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16 साल की उम्र में जब पता चला कि आनंद महिंद्रा सर मुझे महिंद्रा की कोई भी कार गिफ्ट करना चाहते हैं, तो यकीन नहीं हुआ! लेकिन मैंने तय किया कि इसे 18 साल की उम्र में ही लूंगी।

 जन्मदिन के बाद, जब मैंने महिंद्रा सर से मिलकर धन्यवाद दिया, तो वह पल अविस्मरणीय था। "सर, आपने जो भरोसा और हौसला दिया, वो मेरे लिए बहुत मायने रखता है!" यह सफर सिर्फ एक कार पाने का नहीं, बल्कि सपनों को हकीकत में बदलने का था।

फोकोमेलिया बीमारी के कारण बिना हाथों के जन्मी, मैं दुनिया की पहली महिला पैरा-तीरंदाजी चैंपियन बनी। आज अपनी महिंद्रा स्कॉर्पियो के साथ, यह सफर और भी खास हो गया!

❤️ सपने देखो, मेहनत करो, और उड़ान भरो! ✨

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