फिर आप बाकू के हेयार अलीयेव इंटरनेशनल हवाई अड्डे से एक टैक्सी लें, और बाकू से सटे क्षेत्र में जाएँ, जिसे सुरखनी कहा जाता है।
कई शताब्दी पहले यहां जमीन में से बहुत से हाइड्रोकार्बन निकल कर जलते थे तब वहां के लोगों ने जहां जहां आग की ज्वाला जलती थी वहां पर मंदिर बना दिए
अब फोटो में देख सकते हैं कहीं जय ज्वाला मां से शुरुआत करके मां ज्वाला की आरती लिखी गई है कहीं शिव स्त्रोत लिखा गया है और कहीं गुरुमुखी भाषा में कुछ लिखा गया है
और बाद में यह मंदिर पारसियों हिंदुओं और सिखों के लिए पवित्र स्थान बन गए और यह पूरा इलाका सिल्क रूट पर हुआ करता था बहुत से हिंदू और सिख व्यापारी हिंदू कुश की पहाड़ी पार करके अज़रबैजान होते हुए जो यूरोप में जाते थे तब इन मंदिरों में रुकते थे और पूजा अर्चना करते थे ।
आज अजरबैजान में इस्लाम आ गया है क्योंकि बाबर ने अज़रबैजान को जीतकर वहां भी इस्लाम स्थापित किया लेकिन सैकड़ों सालों बाद आज भी यह मंदिर वीराने में यूं ही खड़े हैं और वहां के कुछ हिंदू और सिख और पारसी पूजा अर्चना करते रहते हैं